पढ़िए सेक्स एजुकेशन से संबंधित एक और दमदार, शानदार लेख

पढ़िए सेक्स एजुकेशन से संबंधित एक और दमदार, शानदार लेख यदि आप पूरा पढ़ लोगे तो आपको भी लगेगा कि हां वाकई में बहुत अच्छा लेख है दोस्तो थोड़ा सा लेख बड़ा जरूर है लेकिन बहुत रोमांचक और बहुत जानकारी वाला है इसलिए पूरा जरूर पढें।

लेख शुरू करने से पहले आपको बता दूं मैने इस लेख को भारत के महान दार्शनिक रजनीश ओशो की किताबों को पढ़कर एवं महर्षि वात्सायन की कामसुत्र पुस्तक को पढ़कर तैयार किया है..!!

आइए शुरू करते हैं 👇👇

दोस्तो सबसे पहले मैं सेक्स से संबंधित कुछ बातें आपको बताना चाहती हूं जो मैने अभी तक अनुभव की हैं।

दोस्तो सेक्स हर कोई करना चहता है चाहे वह महिला हो या पुरुष।
कामुक बातें हर किसी को पसन्द हैं
हर कोई कामवासना में लिप्त है।
लेकिन लोग अच्छा होने का दिखावा करते हैं।
जबकि वह भी काम वासना में लिप्त हैं
हालाकि यह कोई बुराई नहीं है क्योंकि यह प्रकृति प्रदत्त है अर्थात प्रकृति ने हमको दिया है।

और सिर्फ मानव ही नहीं बल्कि सभी जीवों की स्वाभाविक प्रक्रिया है।
सहमति से सेक्स कोई गलत नहीं है और ओशो के अनुसार सेक्स भी आम क्रियाओं की तरह ही है।
ओशो कहते हैं जो जीवन को, रूह को आनंदित कर दे वह विषय खराब कैसे हो सकता है।
और फिर जिस विषय पर महर्षि वात्स्यान जैसे महान दार्शनिक ने कामसूत्र पुस्तक लिखी हो और विस्तार पूर्वक वर्णन किया हो बह विषय चर्चा के योग्य क्यों नहीं हो सकता वह विषय खराब कैसे हो सकता है।
सेक्स एजुकेशन के अभाव में ही आजकल बलात्कार जैसे जघन्य अपराध हो रहे हैं क्योंकि लोगों को जिस विषय से जितना दूर रखा जाता है इंसान उसको किसी भी कीमत पर करना चाहता है। यदि सेक्स पर इतनी पाबंदी न हो तो शायद रेप एवं बलात्कार जैसी घटनाओं पर अंकुश भी लग सकता है।

मध्यप्रदेश के खजुराहो के जगत प्रसिद्ध मंदिर जो की विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं उन मंदिरों पर जो चित्रकारी की गई है उसमें संभोग को दर्शाया गया है कई इतिहासकारों का मानना है कि उस समय लोगों की सेक्स से काफी दूरी बन गई थी कोई सेक्स पर बात भी नहीं करता था इसी कारण सेक्स एजुकेशन का प्रचार प्रसार करने एवं यह दर्शाने के सेक्स कोई गलत विषय नहीं है इसीलिए वह चित्रकारी की गई थी

महर्षि वात्सायन कहते हैं कि यदि सेक्स को सेक्स तरह किया जाए तो फिर सेक्स सबसे ज्यादा आनंदित करने बाली क्रिया है।
महर्षि वात्सायन का मानना है कि सिर्फ
इंटरकोर्स करना ही सेक्स नहीं है।
इंटरकोर्स का मतलब आप समझ ही रहे होंगे चूंकि मैं भाषा को थोड़ा मर्यादित रखना चाहती हूं…इसलिए ऐसा लिख रही हूं कि आपको समझ में भी आ जाए और अपने लेख की भाषा की गरिमा भी बनी रहे।
महर्षि वात्स्यान कामसूत्र में लिखते हैं की जो युवक युवती सिर्फ इंटरकोर्स को ही सेक्स समझते हैं इसका मतलब है कि वह सेक्स को समझते ही नहीं हैं।
सेक्स को बड़े ही आराम से एकाग्रचित होकर
और अच्छा समय लेकर करना चाहिए इसमें जल्दबाजी बिलकुल भी नहीं होना चाहिए।
सेक्स में फॉर प्ले का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होना चाहिए फॉर प्ले मतलब संभोग से पहले महिला एवं पुरुष का आपस में प्यार करना और ऐसा प्यार की वह एक दूसरे में खो जाएं।
ओशो कहते हैं कि चाहे पुरुष हो या महिला फोर प्ले के समय अपने साथी को खुश एवं आनंदित करने के लिए हर वह रति क्रीड़ा करनी चाहिए जिससे उसके प्रेमी को सुखद एहसास हो सके।
ओशो ने एक पुस्तक लिखी है संभोग से समाधि की ओर उसमे उन्होंने बहुत विस्तार पूर्वक सम्भोग का वर्णन किया है।

दोस्तो असल में होता क्या है…. कुछ लोग ऊपर से दिखावा ऐसा करेंगे जैसे सारे संस्कार सिर्फ इन्हीं में कूट कूट कर भर दिए हों।
जब कोई सेक्स की बातें करेगा तो बहुत ही संस्कार वान बनेंगे जैसे ये सेक्स करते ही न हों और यदि सच कहूं तो ऐसे ढोंगी लोग ही कामवासना में सबसे ज्यादा लिप्त हैं यही वो लोग हैं जो अकेले में हर रोज पोर्न वीडियो देखते हैं लेकिन सबके सामने बड़े ही मर्यादित बनेंगे।

जैसे एक ताजा उदाहरण आपको दे दूं अभी मैंने सेक्स विषय पर लिखने से पहले आपकी सहमति मांगी थी हालाकि 95 प्रतिशत लोगों ने सहमति दी कुछ लोगों ने विरोध भी किया।
क्या जिन लोगों ने विरोध किया वह सेक्स नहीं करते होंगे मुझे लगता सबसे ज्यादा पोर्न वीडियो ऐसे ही लोग देखते हैं..!
सेक्स एक क्रिया है महान दार्शनिक रजनीश ओशो जी ने कहा है कि जिस प्रकार नहाना धोना,खाना पीना, सोना जागना, एक क्रिया ठीक वैसे ही सेक्स भी एक क्रिया ही है..!

हालाकि ये सिर्फ महिला और पुरुष द्वारा एकांत में करने वाली क्रिया है।

लेकिन सेक्स से संबंधित जरूरी जानकारी पर खुलकर बात करने में कोई बुराई नहीं है।

क्योंकि सेक्स की शिक्षा के अभाव के कारण कई लोग सेक्स से संबंधित बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। कई लोग फर्जी डॉक्टरों द्वारा ठगे जा रहे हैं गर्भपात की दर बढ़ रही है महिलाओं में यौन संबंधी रोग बढ़ रहे हैं इसका वास्तविक कारण है सेक्स एजुकेशन की कमी सेक्स विषय पर खुलकर चर्चा न करना।
इसलिए मैं तो सिर्फ सेक्स ही नहीं जिस विषय पर भी लिखती हूं खुलकर लिखती हूं.!!
सेक्स पर लिखूंगी तो कोई बुराई ही तो देगा इससे ज्यादा और कोई क्या कर सकता है और बुराई तो वैसे भी सहज ही मिल जाती है अच्छे कामों में भी मिल जाती है बुराई तो फिर डर किस बात का।
प्रकृति का एक नियम है हमको जिस चीज से दूर रहने का बचने का बोला जाता है तो फिर उसी चीज में अधिक मन लगता है यही हाल सेक्स विषय का है लोगों के मन में ऐसे भ्रांति पैदा कर दी कि सेक्स के बारे में कोई खुलकर बात भी नहीं कर सकता।
गांवों में तो आज भी यह हालात हैं कि कोई लड़की दुकान से पैड तक नहीं खरीद सकती है।
जिसके कारण महिलाओं में इन्फेक्शन की बीमारी हो जाती है और यही हाल गांवों के लड़कों का है वह आज भी गांव की दुकान से निरोधक लेने में शर्म करते हैं जिससे यौन रोगों का खतरा बढ़ जाता है..!!
ओशो कहते हैं- मैं युवकों से कहना चाहूंगा कि तुम जिस दुनिया को बनाने में लगे हुए हो, उसमें यौन संबंधों को वर्जित मत करना. नहीं तो आदमी और भी कामुक से कामुक होता चला जाएगा. मेरी यह बात देखने में बड़ी उलटी लगेगी. लोग चिल्‍ला-चिल्‍ला कर घोषणा करते हैं कि मैं लोगों में काम का प्रचार कर रहा हूं. सच्‍चाई उलटी है कि मैं लोगों को काम से मुक्‍त करना चाहता हूं और प्रचार वे कर रहे हैं. उनका प्रचार दिखाई नहीं पड़ता क्‍योंकि हजारों साल की परंपरा से उनकी बातें सुन-सुन कर हम अंधे और बहरे हो गए है. इसलिए आज जितना कामुक आदमी भारत में है. उतना कामुक आदमी पृथ्‍वी के किसी कोने में नहीं।

एक शिष्य के सवाल के जवाब देते हुए ओशो ने कहा, ‘अभी मैं एक गांव में था और कुछ बड़े विचारक और संत-साधु मिलकर अश्लील पोस्टर विरोधी एक सम्मेलन कर रहे थे. तो उनका ख्याल है कि अश्लील पोस्टर दीवार पर लगता है. इसलिए लोग कामवासना से परेशान रहते हैं. जब कि हालत दूसरी है. लोग कामवासना से परेशान हैं, इसलिए पोस्टर में मजा है. यह पोस्टर कौन देखेगा? पोस्टर को देखने कौन जा रहा है?’

ओशो ने आगे कहा, ‘पोस्टर को देखने वही जा रहा है, जो स्त्री-पुरुष के शरीर को देख ही नहीं सका. जो शरीर के सौंदर्य को नहीं देख सका, जो शरीर की सहजता को अनुभव नहीं कर सका, वह पोस्टर देख रहा है. पोस्टर इन्हीं गुरुओं की कृपा से लग रहे हैं, क्योंकि ये इधर स्त्री-पुरुष को मिलने-जुलने नहीं देते, पास नहीं आने देते. इसी का परिणाम है कि कोई गंदी किताब पढ़ रहा है, कोई गंदी तस्वीर देख रहा है, कोई फिल्म बना रहा है. क्योंकि आखिर यह फिल्म कोई आसमान से नहीं टपकती, लोगों की जरूरत है…!
इसलिए सवाल यह नहीं है कि गंदी फिल्म क्यों है, सवाल ये है कि लोगों में जरूरत क्यों है? यह तस्वीर जो पोस्टर लगती है, कोई ऐसे ही मुफ्त पैसा खराब करके नहीं लगाता, इसका कोई उपयोग है. इसे कहीं कोई देखने को तैयार है, मांग है इसकी. वह मांग कैसे पैदा हुई है? वह मांग हमने पैदा की है. स्त्री-पुरुष को दूर कर वह मांग पैदा हुई. अब वह मांग को पूरा करने जब कोई जाता है तो हमें गड़बड़ लगती है. तो उसके लिए और बाधाएं डालते हैं. उसको जितनी वे बाधाएं डालेंगे, वह नए रास्ते खोजता है मांग के. क्योंकि मांग तो अपनी पूर्ति मांगती है..!

ओशो ने अपनी किताब में कहा है कि मेरे एक डॉक्‍टर मित्र इंग्‍लैण्‍ड के एक मेडिकल कॉन्फ्रेंस में भाग लेने गए थे. वाइट पार्क में उनकी सभा होती थी. कोई 500 डॉक्‍टर इकट्ठे थे. बातचीत चलती थी. खाना-पीना चलता था. लेकिन पास की बेंच पर एक युवक और युवती गले में हाथ डाले अत्‍यंत प्रेम में लीन आंखे बंद किए बैठे थे. उन मित्र के प्राणों में बेचैनी होने लगी. भारतीय प्राण में चारों तरफ झांकने का मन होता है. अब खाने में उनका मन न रहा. अब चर्चा में उनका रस न रहा. वे बार-बार लौटकर उस बेंच की ओर देखने लगे. पुलिस क्‍या कर रही है. वह बंद क्‍यों नहीं करती ये सब. ये कैसा अश्‍लील देश है. यह लड़के और लड़की आंख बंद किए हुए चुपचाप 500 लोगों की भीड़ के पास ही बेंच पर बैठे हुए प्रेम प्रकट कर रहे है. कैसे लोग हैं. यह क्‍या हो रहा है. यह बर्दाश्‍त के बाहर है. पुलिस क्‍या कर रही है. बार-बार वहां देखते.पड़ोस के एक ऑस्‍ट्रेलियन डॉक्‍टर ने उनको हाथ का इशारा किया ओर कहा, बार-बार मत देखिए, नहीं तो पुलिसवाला आपको यहां से उठा कर ले जाएगा. वह अनैतिकता का सबूत है. यह दो व्‍यक्‍तियों की निजी जिंदगी की बात है और वे दोनों व्‍यक्‍ति इसलिए 500 लोगों की भीड़ के पास भी शांति से बैठे है, क्‍योंकि वे जानते हैं कि यहां सज्‍जन लोग इकट्ठे हैं. कोई घूरेगा नहीं. आपका यह देखना अच्‍छे आदमी का सबूत नहीं है. आप 500 लोगों को देख रहे हैं, कोई भी फिक्र नहीं कर रहा. यह उनकी अपनी बात है. और दो व्‍यक्‍ति इस उम्र में प्रेम करें तो पाप क्‍या है? और प्रेम में वह आंख बंद करके पास-पास बैठे हों तो हर्ज क्‍या है? आप परेशान हो रहे है. न तो कोई आपके गले में हाथ डाले हुए है, न कोई आपसे प्रेम कर रहा है.वह मित्र मुझसे लौटकर कहने लगे कि मैं इतना घबरा गया कि कैसे लोग हैं. लेकिन धीरे-धीरे उनकी समझ में यह बात पड़ी कि दरअसल गलत वे ही थे. हमारा पूरा मुल्‍क ही एक दूसरे घर में दरवाजे के होल बना कर झांकता रहता है. कहां क्‍या हो रहा है.कौन क्‍या कर रहा है? कौन जा रहा है? कौन किसके साथ है? कौन किसके गले में हाथ डाले है? कौन किसका हाथ-हाथ में लिए है? क्‍या बदतमीजी है, कैसी संस्‍कारहीनता है. यह सब क्‍या है? यह क्‍यों हो रहा है? यह हो रहा है इसलिए कि भीतर वह जिसको दबाता है, वह सब तरफ से दिखाई पड़ रहा है. वही दिखाई पड़ रहा है.युवकों से मैं कहना चाहता हूं कि तुम्‍हारे मां बाप, तुम्‍हारे पुरखे, तुम्‍हारी हजारों साल की पीढ़ियां यौन संबंध से भयभीत रही हैं. तुम भयभीत मत रहना. तुम समझने की कोशिश करना उसे. तुम पहचानने की कोशिश करना. तुम बात करना. तुम इसके संबंध में आधुनिक जो नई खोज हुई है उनको पढ़ना, चर्चा करना और समझने की कोशिश करना कि सेक्‍स क्‍या है.
भारत के युवक के चारों तरफ सेक्‍स घूमता रहता है पूरे वक्‍त. और इस घूमने के कारण उसकी सारी शक्‍ति इसी में लीन और नष्‍ट हो जाती है. जब तक भारत के युवक की इस रोग से मुक्‍ति नहीं होती, तब तक भारत के युवक की प्रतिभा का जन्‍म नहीं हो सकता. प्रतिभा का जन्‍म तो उसी दिन होगा, जिस दिन इस देश में सेक्‍स की सहज स्‍वीकृति हो जायेगी. हम उसे जीवन के एक तथ्‍य की तरह अंगीकार कर लेंगे—प्रेम से, आनंद से—निंदा से नहीं. और निंदा और घृणा का कोई कारण भी नहीं है…!!
दोस्तो भले ही हमारा विषय सेक्स का है लेकिन फिर भी मैंने लेखन की भाषा की गरिमा का ध्यान रखा है कहीं भी आपत्तिजनक एवं अश्लील शब्दों का प्रयोग नहीं किया है।
मुझे पूरा विश्वास है मेरे इस लेख पर आपका प्यार जरूर मिलेगा आपको जरूर पसन्द आयेगा।

दोस्तो एक निवेदन है यदि आपको लेख अच्छा लगे तो शेयर जरूर कीजिएगा।

 

🙏 धन्यवाद 🙏

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